Friday 30 September 2022

रातो रात दिग्विजय से खड्गे ?

                                                रातो रात दिग्विजय से खड्गे ?

एक बार फिर कांग्रेस में या यूँ कहें कि परिवार में राहुल गाँधी की नहीं चली, मौजूदा हालात को काबू करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष पद के उम्मीदवार के तौर पर भेजे गए उनके दूत श्री दिग्विजय सिंह पर सोनिया गाँधी के सलाहकार भारी पड़ गये !

एक दौर था जब दिग्विजय सिंह को राहुल का राजनैतिक गुरु माना जाता था, उस दौर में राहुल भट्टा पारसौल जैसे आन्दोलन किया करते थे, 2009 के लोकसभा चुनावो में कांग्रेस को मिली जीत, विशेषकर उत्तर प्रदेश में 21 सीटो पर कांग्रेस का जीतना राहुल का ही करिश्मा था और निश्चित तौर पर दिग्विजय सिंह की मेहनत.

वक्त बदला, हालात बदले .. राहुल अब देश के सामने पप्पू घोषित हो चुके थे, कुछ वर्षो पहले देश भर में राजकुमार जैसा प्यार पाने वाले  राहुल अब सोशल मीडिया पर महज मीम्स बनाने के काम आते थे, ये वो दौर था जब राहुल के सलाहकारों में उनके अपने स्वघोषित राजनैतिक सलाहकारों ने ले ली थी, अब ये लोग तय करने लगे थे कि राहुल किससे मिलेंगे, किससे नहीं , वो किसका फोन लेंगे किसका नहीं और उसी दौर में गोवा चुनाव में दिग्विजय सिंह को सरकार बनाने भेजा गया, इन्ही तथाकथित सलाहकारों की वजह से और राहुल गाँधी तक सही खबर नहीं पंहुचने या आलाकमान से सीधा संपर्क ना होने की वजह से गोवा में सरकार नहीं बन पाई और उसका ठीकरा दिग्विजय सिंह पर फोड़ दिया गया, और उन्हें अब राहुल के आन्तरिक वृत्त से परिधि के बाहर भेज दिया गया, दिग्विजय सिंह ने हिम्मत नहीं हारी, काम करते रहे नर्मदा यात्रा के दौरान लाखो कार्यकर्ताओ को जगाया, फलस्वरूप मध्य प्रदेश में अच्छे परिणाम आये . 

एक बार फिर जब कांग्रेस हासिये पर है, दिग्विजय सिंह ने भारत जोड़ो यात्रा की परिकल्पना की और राहुल को इस यात्रा के लिए राजी और एक बार फिर वो राहुल के करीबियों में शामिल हो गए, लगभग 5-7 वर्षो के वनवास के बाद राहुल के  साथ साथ वह यात्रा पर निकले और कुछ दिनों पहले उपजे विवाद को ख़त्म करने और दिग्विजय जैसे मंझे हुए नेता को कांग्रेस का उम्मीदवार बनाकर राहुल ने दिल्ली भेजा, पर दिल्ली में बैठे सोनिया गाँधी के टीम के लोगो को यह बात रास नहीं आई और रातोंरात कहानी फिर से बदल दी गयी. 

दिग्विजय सिंह ने तुरंत अपना रुख बदला और आलाकमान के आदेश को सर आँखों पर रखते हुए चुनाव लड़ने का इरादा छोड़ दिया और शायद वो एक दो  दिनों में वापस भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हो जाये . 

ये वो दिग्विजय सिंह हैं जिन्हें बिना किसी गलती के राहुल की टीम से बाहर कर दिया गया पर उन्होंने कोई बदजुबानी कभी नहीं की और उसका नतीजा ये कि आज वो फिर से टीम में हैं.

एक अहम् बात, राहुल आखिर अध्यक्ष बनना क्यूँ नहीं चाहते हैं ? सबसे पड़ी वजह यही कि उनकी लड़ाई सिर्फ कांग्रेस के पुराने नेताओ से नहीं बल्कि अपने परिवार से भी है, सैद्धांतिक तौर पर उनके विचार सोनिया गाँधी से कभी मेल नहीं खाते और यही वजह है कि उनके लिए कई फैसले बदल दिये जाते हैं, सबसे ताजा उदाहरण कांग्रेस अध्यक्ष पद की उम्मीदवारी का ..

दिग्विजय अगर अध्यक्ष बनते तो पूरे देश में कार्यकर्ताओ के नाम पर शुन्य पड़ी कांग्रेस में जान फूंकने का काम करते, देश भर में संगठन के तौर पर कांग्रेस की एक फ़ौज जरुर खड़ी हो जाती .. हालाँकि अब जब खड्गे अध्यक्ष बन रहे हैं और वो शायद अभी तक कोई चुनाव नहीं हारे हैं, हो सकता है उनका कोई लक चल जाये और कांग्रेस आने वाले कुछ चुनाव जीत पाए . 


Monday 23 March 2020

कोरोना : हम कितने तैयार

                                                  ! कोरोना : हम कितने तैयार !
तमाम विशेषज्ञो और मीडिया चैनल्स की माने तो वैज्ञानिक रूप से हम कोरोना को कल आधे घंटे ताली और थाली बजाकर भगा चुके हैं, चूँकि अंतर्राष्ट्रीय विमानों का आवागमन सरकार द्वारा स्थगित कर दिया गया है इसलिए मुझे थोड़ी आशंका है कि कोरोना भाग गया होगा, हाँ एयरपोर्ट तक जरूर पँहुच गया होगा अब चूँकि अगले  कुछ दिनों तक अंतर्राष्ट्रीय विमान सेवा में नहीं हैं तो क्या पता उसका मूड बदले और वो वापस आ जाये, तो वापस आने की स्थिति में हमारी क्या तैयारियाँ हैं यह जानना जरुरी है ?
            
             मै यहाँ यह बात नहीं करूँगा कि अगर आप दिल्ली एनसीआर में रह रहे हैं और आपको आशंका हुई कि आप कोरोना से संक्रमित हैं तो आप किस अस्पताल में चेक अप कराने जायेंगे?  और देश में इस तरह की बीमारी से लड़ने के लिए क्या संसाधन हैं ? मै सिर्फ ये बताना चाहूंगा कि क्या आपको पता है कि देश में इस तरह  की आपदा से लड़ने के लिए हमारा अपना कोई कानून नहीं है ?
           हमारे पास कानून के नाम पर अंग्रेजो द्वारा बनाया गया Epidemic Diseases Act, 1897 है, (हालाँकि पूरा संविधान ही उनके द्वारा बनाया गया है फिर भी समय दर समय इसमें परिवर्तन होते रहे हैं ) जिसे अब राज्य और केंद्र सरकार ने invoke किया है या उस कानून के द्वारा क़ानूनी स्थिति सुधारने की कोशिश कर  रही है, यह कानून  तब के बॉम्बे प्रेसीडेंसी द्वारा 1896 में तब बना था जब देश प्लेग जैसी महामारी से जूझ रहा था, 
     इस कानून की कुछ अच्छी बाते  :
           यही  कानून राज्य और केंद्र सरकारों को  शक्ति देता है जिसके द्वारा वह किसी भी क्षेत्र को अति प्रभावित क्षेत्र घोषित कर जरुरी कार्यवाही कर सकते हैं, किसी भी नागरिक, आगंतुक का इंस्पेक्शन कर सकते हैं , इसी कानून के  सेक्शन 2A के आधार पर केंद्र सरकार  किसी भी अंतर्राष्ट्रीय विमान, पनडुब्बी की तलाशी ले सकता है रेगुलेशन सेट कर सकता है, और सेक्शन 2 यही अधिकार राज्य सरकारों को  भी देता है, सेक्शन 2   सरकारों को यह भी अधिकार देता है कि वह इस आपदा से लड़ने के लिए कोई भी तात्कालिक कानून बना सकते हैं और उसी कानून का प्रयोग करते हुए दिल्ली, उत्तराखंड, पंजाब, महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने अपने अपने राज्यों में लॉक डाउन की घोषणा की है, सेक्शन 3 के अनुसार जो व्यक्ति इन परिस्थितियों में राज्य या केंद्र सरकार द्वारा बनाये गए नियमो का पालन नहीं कर रहा है उस पर   IPC की  धारा 188  के अंतर्गत कार्यवाही की जा सकती है  (हालाँकि IPC 188 के अंतर्गत अधिकतम सजा सिर्फ 6 महीने की है या 1000 का जुर्माना, या दोनों सजा हो सकती है, इसलिए इस धारा  के अंतर्गत किसी की तत्काल गिरफ़्तारी संभव ही नहीं है ). 
          सेक्शन 4 के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति पर कोई क़ानूनी कार्यवाही नहीं की जाएगी यदि उसने Good Faith में कोई ऐसा काम किया है जिससे इस आपदा से लड़ने में मदद मिल रही हो।  

कानून की कमियाँ :
                यह कानून सिर्फ और सिर्फ रेगुलेटरी की बात करता है जबकि स्वास्थ्य सेवाओं पर बात नहीं करता, 
लगभग 125 साल पुराना कानून हो सकता है तब की परिस्थियों को टैकल करने में सक्षम रहा हो पर क्या आज भी वही कानून सक्षम है, यह कानून तब बना था जब केवल लोगो पर काबू कैसे पाया जाय इस बात की प्राथमिकता ज्यादा थी, और लोगो को ठीक कैसे किया जाय इस बात की नगण्यता।  
               हालाँकि 2009 में तब की सरकार  इस कानून को रिप्लेस करने के लिए नेशनल हेल्थ बिल लेकर आयी थी जिस बिल की खास बात यह थी कि स्वास्थ्य को फंडामेंटल ह्यूमन राइट बनाने का निर्णय था, उस बिल के अनुसार देश का  हर नागरिक बेहतर से बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं पाने का अधिकारी होगा और इस कानून के द्वारा लोगो के इस अधिकार को क़ानूनी रूप देने का निर्णय लिया  गया था जिससे कोई भी सरकार उससे मुँह न मोड़ पाये, पर देश में ऐसे कानूनों के पास होने के लिए अभी लम्बी लड़ाई लड़नी होगी, क्यूँकि जब हमारा काम थाली और ताली बजाकर चल जा रहा है तो फिर हमें बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की जरुरत ही क्या है ?


Wednesday 11 March 2020

मध्य प्रदेश का असली महाराज

                                                     मध्य प्रदेश का असली महाराज
लोग कहते हैं सियासत संभावनाओं से भरी हुई है, कौन कब क्या कदम उठाएगा कभी कभार उसका अनुमान लगाना भी कठिन होता है, शायद राहुल गाँधी ने भी यही अनुमान लगाया होगा कि उनके सखा श्रीमान सिंधिया कभी उन्हें छोड़ कर नहीं जायेंगे, पर अपने पिता की 75 वी वर्षगांठ पर सिंधिया ने उन्हें छोड़ने के फैसला ले ही लिया और अगले ही दिन दूसरा दामन भी थाम लिया, 18  वर्ष के कांग्रेस के  राजनीतिक कार्यकाल में 17  वर्ष सांसद, 10  वर्ष मंत्री रहे सिंधिया आखिकार बीजेपी में क्यों शामिल हुए , और उनके बीजेपी में शामिल होने से सबसे बड़ा फायदा किसका होगा ये दोनों बाते बहुत ही महत्वपूर्ण  हैं ?
ज्योतिरादित्य को यह पता है कि बीजेपी में शामिल हो जाने के बावजूद भी वह कभी मध्यप्रदेश की राजनीति में अग्रणी भूमिका में नहीं आ पायेंगे (यदि नहीं पता तो यह उनका राजनीतिक अल्पज्ञान ही समझा जायेगा ) जिसकी इच्छा उन्हें हमेशा से रही है ना ही वह कभी केंद्र की राजनीति किसी बड़े पद पर आ पायेंगे क्यूँकि बीजेपी में आना तो बड़ा आसान है पर अपनी जमीन तलाशना उतना ही मुश्किल, हालाँकि जहाँ तक मुझे लगता है ज्योतिरादित्य यहाँ वह सब तलाशने भी नहीं आये हैं, जिस अभिमानी ज्योतिरादित्य को मै जानता हूँ उस ज्योतिरादित्य का सिर्फ और सिर्फ एक मकसद है अपने अंदरूनी विरोधियो को सबक सिखाना, उनके इस दांव से हो सकता है उनके विरोधियो को तत्कालिक हानि पँहुच भी जाये ,पर दूरगामी स्तर पर हानि सिर्फ और सिर्फ ज्योतिरादित्य की ही है, ये सबको ज्ञात है कि अगर इस पाँच साल के बाद कांग्रेस की सरकार मध्य प्रदेश में आती भी तो कमलनाथ कभी भी मुख्यमंत्री नहीं बनते, और दिग्विजय सिंह तो अब दौड़ में रहे ही नहीं, उस स्थिति में केवल और केवल एक नेता होता जिसे मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलती और जिसका जिक्र राहुल गाँधी ने 2018 के अपने ट्वीट में किया भी था और जिसे आज उन्होंने  रीट्वीट भी किया- दो सबसे ताकतवर योद्धा - समय और धैर्य, हालाँकि ज्योतिरादित्य ने 15 महीनो का धैर्य रखा पर अंततः उनके धैर्य का बांध टूट गया. हाल की स्थिति में यह कहना जल्दबाजी होगी कि अगले कुछ दिनों में मध्य प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी, हालाँकि जब तक मध्य प्रदेश में दिग्विजय जैसा संगठन कर्ता और कमलनाथ जैसा घाघ  और धनपशु हो वहाँ किसी की सम्भावना को नकारा नहीं जा सकता, खैर सरकार रहे या ना रहे , मध्य प्रदेश और कांग्रेस का  एक महत्वपूर्ण चेहरा दोनों परिस्थितियों में विजयी रहेगा और वह चेहरा और नाम है दिग्विजय सिंह।
एक समय राहुल के करीबियों में से एक दिग्विजय को जब करीबी से बाहरी का रास्ता दिखा दिया गया तब भी उन्होंने हार नहीं मानी, वह लगातार संघर्ष करते रहे और अंततः मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार उनकी वजह से ही बनी, वो कभी खुल कर सामने नहीं आये यहाँ तक कि चुनाव में जब राहुल की सभा होती थी तब भी उन्हें दूर रखा जाता था और महत्वपूर्ण बैठकों में भी उनकी भागीदारी कम ही होती थी पर उनकी अहमियत हमेशा कायम रही, टिकट बंटवारे में भी और मंत्री पद के बंटवारे में भी, सरकार बनने के बाद उनका दूसरा लक्ष्य था ज्योतिरादित्य  को  मध्य प्रदेश की सत्ता से दूर रखना जिसमे वह शत प्रतिशत कामयाब भी रहे और उसी का नतीजा है कि आज ज्योतिरादित्य ने 
भाजपा की सदस्यता ग्रहण की. दिग्विजय सिंह अपने बेटे को विधायक और बाद में अहम् मंत्रालय दिलवा चुके है और ज्योतिरादित्य के विपरीत अपने मिलनसार व्यवहार के बदौलत पिता दिग्विजय की भांति जयवर्धन  क्षेत्र की जनता और कार्यकर्ताओ में खासे पसंद किये जाते हैं. तो अब यदि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार नहीं भी बचती है तो यह तय है कि  कांग्रेस की तरफ से मध्य प्रदेश के  अगले महाराज जयवर्धन ही होंगे, और ज्योतिरादित्य के इस कदम से हो सकता है राहुल गाँधी को भी यह एहसास हो कि दिग्विजय सिंह उनके वह सिपाही हैं जो  हमेशा उनके लिए खड़े रहेंगे क्यूंकि जितनी अनदेखी और ज्यादती दिग्विजय सिंह के साथ हुई है उसका 10 वा हिस्सा भी ज्योतिरादित्य के साथ नहीं हुई, फिर भी दिग्विजय सिंह पार्टी के साथ खड़े रहे और जितना मै उनको जानता हूँ जीवन पर्यन्त खड़े रहेंगे, तो सरकार बचने  की स्थिति में दिग्विजय का कद जहाँ और बढ़ेगा वही सरकार न बनने की स्थिति में भी उनके और उनके बेटे के लिए रास्ता साफ होने वाली कहावत चरितार्थ होती दिख रही है। 

Tuesday 4 February 2020

क्या कहता है संविधान?

                                                 Series 1  (कौन चुनता है मुख्यमंत्री/प्रधानमंत्री )

आज एक प्रदेश के मुखिया को यह कहते सुना कि जनतंत्र में मुख्यमंत्री चुनना जनता का अधिकार है?  क्या ऐसा सच में है?
            इसमे कोई दो राय नहीं कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और यहाँ प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से सारे चुनाव जनता ही करती है पर क्या संविधान इस बात की ईजा जत देता कि देश की जनता प्रदेश में मुख्यमंत्री और देश में प्रधानमंत्री चुने?
            जहाँ एक तरफ अनुच्छेद 164(1) कहता है कि Chief Minister shall be appointed by the Governer यानि कि मुख्यमंत्री राज्य के राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाएगा,  वहीं Representation of People Act 1951 की धारा 15 इलेक्शन ऑफ स्टेट लेजिस्लेटिव असेंबली की बात करता है, पर कहीं भी यह नहीं लिखा है कि मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री का चुनाव सीधे जनता करती है. कई सारे मामलों में उच्चतम न्यायालय और सरकारिया कमिशन ने हालांकि मुख्यमंत्री की नियुक्ति और सरकार बनाने के लिए किसको न्योता देना चाहिए, इस बारे में कई observation दिए हैं परन्तु अगर आप संविधान और Representation of people act 1951  खंगाले तो कहीं भी यह नहीं पायेंगे कि मुख्यमंत्री और प्रधान मंत्री का चुनाव जनता करती है.. अगर ऐसा होता तो श्री मनमोहन सिंह, अखिलेश यादव जैसे नेता कभी भी देश के प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री नहीं होते
          संविधान के अनुसार देश का कोई भी नागरिक जिसकी उम्र 25 वर्ष से ज्यादा हो मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री नियुक्त किया जा सकता है, यह एक न्यूनतम अर्हता है जिसमें कहीं भी विधानसभा, परिषद, संसद का सदस्य होना जरूरी नहीं है (हालांकि 6 महीने के अंदर उन्हें इनमे से किसी एक का सदस्य बनना पड़ता है), तो अब जब भी कोई नेता आपसे मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री चुनने को कहे तो एक बार उससे यह सवाल जरूर करियेगा कि संविधान की कौन सी धारा या अनुच्छेद हमें सीधा प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री चुनने का अधिकार देती है?

Monday 28 October 2019

!!चलो दिये लूटते हैं !!

हर रोज सुबह उठता हूँ तो पहले बालकनी में जा कर देखता हूँ की सूर्य कहाँ तक चढ़ आया है, धूप  कितनी है, बालकनी में लगे पौधे ठीक हैं कि नहीं , पर आज अचानक जब सुबह उठा तो अनायास ही पहला ध्यान रात में लगाए दियों पर गया, देखा तो सारे दिए जस के तस  पड़े थे, फिर ध्यान आया कि घर में  भला कौन आएगा , भागता हुआ सीढ़ियों की तरफ गया , वहाँ भी सारे दिये  बुझ कर शांत से पड़े हुए थे , मैंने एक झटके में सारे दिए समेटे और सबको लेकर घर में घुस गया, फिर लगा कि किसी ने देखा तो नहीं ? दियो को घर में रख कर फिर बाहर गया, कोई नहीं था वहाँ , फिर झट से अंदर आया और दिये  गिनने  शुरू कर दिए , गिनते गिनते ध्यान आया कि मै गिन क्यों रहा हूँ, और इन दियो का मै करूँगा क्या ?  सारे दिये हाथ से छूट गए और आँखे बचपन के उस दौर में चली गयी  जब दीवाली की सुबह  माँ सोते में  ही काजल लगा  दिया करती थी (क्यूँकि जगने पर कोई लगवाता नहीं )और सुबह जल्दी जगा कर कहती थी , दिया लूटने नहीं जाओगे क्या? सुनते ही सारी नीद गायब हो जाती थी और हमारी टोली  पूरे गाँव के दिये  लूटने निकल पड़ती थी , एक होड़ सी थी हम सब में सबसे ज्यादा दिया लूटने का , हालाँकि  उन दियों का उपयोग बस इतना सा था कि उस पूरे दिन उसमे छेद  करके  तराजू बनाया जाता था और घर में पड़ी सारी चीजे उस रोज तौल दी जाती थी, वैसे प्रतिस्पर्धा यही ख़त्म नहीं होती उसके बाद  होड़ लगती थी सबसे ज्यादा तराजू किसके हैं ? उसमे से कई दिये छेद करते समय टूट जाया करते थे तो कभी कभार सबसे  ज्यादा दिया लूटने वाला भी दूसरे से दिये उधर माँग रहा होता था ,? दीवाली के अगले रोज पूरे दिन का काम ही यही होता था आँख मे लगे काजल को छुड़ाते रहना और घर में पड़ी हर छोटी बड़ी चीज को अपने तराजू से तौलना.. 
            पर जब से इस आधुनिक शहर की तरफ बढ़े हैं ना दिया है ना उसे लूटने वाला और Lakme  और दुनिया भर के महंगे काजल और Eye  लाइनर के जमाने मे ना तेल और दिये के सहारे से पारा गया काजल लगाने वाला और ना ही उसे पारने वाला, हालाँकि इस दीवाली मै अपने ही लगाये दिये लूटकर खुश हूँ, हाँ तराजू नहीं बना पाउँगा इस बात का दुःख जरूर है, पर अब उस दिये के तराजू की जरुरत ही कहाँ , हम हर वक़्त हर क्षण एक दूसरे को अपने अनुसार तौलते ही तो रहते हैं ?? शुभ दीपावली !!

Tuesday 17 September 2019

सामाजिक कोहराम

                                                              ! सामाजिक कोहराम !

               कई नव अंकुरित फेमिनिस्ट के विचार पढ़ रहा था, कोई चिट्ठी लिख के तो कोई निवेदन पत्र लिख कर अपने आस पास के रिश्तेदारों, चाचाओ, मामा को कोस रहा था तो कोई ताक झाँक करने वाले सामाजिक मित्रों को.. आज या यूँ कहूँ कि अक्सर सड़कों पर, मेट्रो में, बसों में ऐसे अनेक सामाजिक जगहों पर कुछ ऐसा देखता हूँ कि समाज की याद आती है, उस समाज की जिसकी संरचना किसी विशेष उद्देश्य से हुई नहीं थी अपितु विशेष उद्देश्यों मे परिवर्तित हो गयी थी.. आज की घटना कुछ विशेष है इसलिए पहले उसे कहने के बाद ही विषयांतर (विषयांतर इसलिए क्यूँकि, आधुनिक युग में ऐसे विषय की बात करना विषयांतर होने जैसा ही है ) होना चाहूँगा, आज दिल्ली के एक नामचीन जगह पर बैठा हुआ था, सामने एक ठेले वाला गाने की धुन में मस्त चिप्स, ठंडाई, सिगेरट, गुटखा  और बिसलेरी की दुकान सजाये खड़ा था, एक बच्ची आई, उम्र लगभग 12 या 13 साल रही होगी, ठेले वाले भैया से  सिगेरट की वैरायटी छाँटते  हुए बोली, लाइटर रखा करो, माचिस से जलाने  में मज़ा नहीं आता, ठीक है मैडम कहते हुए उस भैया ने सर हिलाया और पैसे अपने तिजोरी में डाल  लिया , सिगेरट की डिबिया लेकर ज्यों  ही वह बच्ची मुड़ी, उसी की हमउम्र ३-४ लड़कियों ने उसे घेर लिया और अपना अपना सिगेरट छीनने के बाद वही पास में सड़क के किनारे बैठ के सिगेरट में धुएँ  से छल्ला उड़ाने लगी, मेरे आसपास जितने लोग बैठे थे सब अफसोस जताने के अलावा और कुछ नहीं कर पाने की स्थिति में थे, पता है क्यूँ ? क्यूँकि उन बच्चियों पर उनका कोई हक़ नहीं है, क्यूँकि "मुझे मेरी प्राइवेसी  चाहिए" के ज़माने में हम माँ बाप, चाचा चाची , पड़ोस के अंकल जैसे  रिश्तों  को खूँटी पर टाँग आये हैं , हमें अब किसी बड़े की बात उसके टाँग अड़ाने के अलावा और कुछ नहीं लगती !
              खैर ये तो बच्चियाँ थीं, हर कुछ जल्दी जानने के बाद उसे अनुभव करने के शौक से ग्रसित हैं पर सामाजिक रिश्तो का ख़त्म होना सिर्फ ऐसी घटनाओ को बढ़ावा नहीं दे रहा अपितु हमारे घर के बेडरूम  से लेकर हमारे जीवन के मूल्यों पर भी चोट कर रहा है, पति पत्नी की लड़ाई को पहले सास ससुर या चाचा सास ससुर अपनी मध्यस्थता से छोटी छोटी लड़ाइयों को वही ख़त्म करा पाने की हैसियत में थे, पर प्राइवेसी चाहिए वाली जिंदगी के झगडे अब  बेडरूम से शुरू होकर सीधे कोर्ट रूम में ही ख़त्म हो रहे हैं ?
                 एक लड़की या महिला जिसे पूरा गांव और आसपास के कुछ गांव के लोग बहन, चाची , दादी के रिश्ते से जानते थे और मानते थे आज उन्ही रिश्तो के अभाव में शहर के अपनी ही गली में रहने वाले किसी लड़के या आदमी से बलात्कार का शिकार हो जाती है, घर का कोई लड़का जब कोई गलत काम करता था तो उसे केवल अपने माँ बाप की नहीं चाचा, मामा ,अंकल सबसे डर लगता था, पर अब बाप की  भी क्या मजाल जो ऊँची आवाज में बेटे से बात कर ले ,
                    अगर आपको ये लगता है कि हमारी पर्सनल लाइफ में कोई अंकल, कोई आदमी  क्यूँ दखल करे जो हमें ना खाने को देता है ना पीने को, तो क्या आप ये सोचते हैं कि हमारे भी माँ बाप किसी के अंकल हैं वो भी दखल देते ही होंगे,इसलिए नहीं कि उन्हें किसी के जीवन में चरस बोना है, इसलिए कि कहीं ना कहीं उस पडोसी के लड़के या लड़की से आत्मीयता है, सोचिये आज ये जो दिन दोपहरी शहर के सबसे व्यस्त इलाके में लैला मजनू का जो ये अश्लील खेल हर रोज खेला जाता है, क्या वह खेल किसी चाचा, मां या जानने वाले के सामने खेला जा सकता है क्या? सोचना आपको है आपको अपनी प्राइवेसी चाहिए या वो समाज जहाँ हर एक शख्स एक दूसरे के दुःख सुख में खड़ा है, वो समाज चाहिए जो आपके किसी अपने के चले जाने पर आपके साथ महीनो तक ढृढ़ता से खड़ा है या वह समाज जो चिता जलने तक का इंतज़ार नहीं कर पाता और पानी प्राइवेसी वाली जिंदगी में गुम होने चला जाता है, सोचिएगा जरूर। 

Tuesday 16 October 2018

Laws related to sexual harassment of women in India


                       Laws related to sexual harassment of women
In this piece, my endeavour is to summarize the law (Both – substantive and procedural) pertaining to this issue.
1.   Substantive Law
The substantive law i.e. what will constitute an offence against the body of a woman may be divided into 4 main categories depending upon the place where it is committed – a public place, a workplace, a shared household (including home) and other places. The law can further be classified based upon the age of victim i.e. if it is below 12, between 12-16 or between 16 to 18 or above 18 years of age. Now, there are 6 main legislative enactments which deal with the issue – Indian Penal Code 1860 (IPC), Protection of women from Domestic Violence Act 2005 (DV Act), Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012 (POCSO), Sexual Harassment of Women at Workplace (Prevention, Prohibition and Redressal) Act, 2013 (Workplace Act), Information Technology Act, 2000 and the Indecent Representation of Women (Prohibition) Act, 1987.
If an act of sexual harassment (which ranges from a sexually coloured remark to a non-consensual or fraudulently obtained consensual sexual intercourse) is committed against a victim at a workplace and she is above 18 years of age, she gets the remedy available under the IPC and the Workplace Act. If she is married and the same is committed against her at her home, she is aggrieved under IPC and the DV Act. If he/she is a child (below 18 years of age), IPC along with POCSO is attracted. IPC is therefore applicable irrespective of the place of occurrence.
IPC Section 375 defines Rape as- A man is said to commit ‘Rape” if he-
A-   Penetrates (to any extent ) his penis, into the vagina (which term shall include the labia majora), the anus or urethra or mouth of any woman or child–
B-   Inserts to any extent, any object or a part of the body (other than the penis) into the vagina(which term shall include the labia majora) or anus or urethra of a woman
C-  the introduction to any extent by a person of an object or a part of the body (other than the penis) into the vagina(which term shall include the labia majora) or anus or urethra of a child. (d) manipulating any part of the body of a child so as to cause penetration of the vagina (which term shall include labia majora) anus or the urethra of the offender by any part of the child's body;
In circumstances falling under any of the  following descriptions:
Firstly – Against the complainant's will.
Secondly – Without the complainant's consent.
Thirdly – With the complainant's consent when such consent has been obtained by putting her or any person in whom the complainant is interested, in fear of death or hurt.
Fourthly – With the consent of the complainant, when, at the time of giving such consent, by reason of unsoundness of mind or intoxication or the administration by the offender personally or through another of any stupefying or unwholesome substance, the complainant is unable to understand the nature and consequences of that to which such complainant gives consent.
Fifthly – With or without the complainant's consent, when such complainant is under eighteen years of age. Provided that consent shall be a valid defence if the complainant is between sixteen years and eighteen years of age and the accused Person is not more than five years older.
Apart from the above, section 326A, 326B (Acid attack) and 323 (assault) may also be seen as per the case.
Indecent Representation of Women (Prohibition) Act, 1987
“Indecent representation of women” means the depiction in any manner of the figure of a woman, her form or body or any part thereof in such a way as to have the effect of being indecent, or derogatory to, or denigrating, women, or is likely to deprave, corrupt or injure the public morality or morals. If an individual harasses another with books, photographs, paintings, films, pamphlets, packages, etc. containing the “indecent representation of women”, they are liable for a minimum sentence of 2 years. Section 7 (Offenses by Companies) further holds companies where there has been “indecent representation of women” (such as the display of pornography) on the premises, guilty of offenses under this act, with a minimum sentence of 2 years.
2. Procedural Law
The chief procedural law dealing with substantive law is the Code of Criminal Procedure, 1973. Let us go step by step as to how things are set in motion.
1.    All sexual offences under IPC are cognizable and non bailable except sections 354A, (Cognizable and bailable- Sexual harassment of the nature of unwelcome physical contact and advances or a demand or request for sexual favours, showing pornography) 376B(sexual intercourse by husband upon his wife during separation) and 509 (Word, gesture or act intended to insult the modesty of a woman.)
2.    The first step is to lodge an FIR at the nearest Police Station. Registration of FIR by police officer is mandatory in cases of cognizable offences. A prompt FIR always helps. When received in written form, signature of informant is must. U/s 19 of the POCSO reporting of apprehension of crime is mandatory.
3.    A survivor can lodge a ‘Zero FIR’ irrespective of the jurisdiction in any police station and the information will be sent by such police station to the police station with jurisdiction to investigate. Police cannot refuse to register FIR in cases of cognizable offences.
4.     For offences against a woman u/ 326A, 326B, 354, 375, 376 – 376E and 509, woman police officer has to record the information. Or child complainants and differently abled complainants, the procedure is separate.
5.     If the police officer approached refuses to register FIR, the complainant can speak to the Station House Officer (SHO). Not registering FIR in the sections mentioned above is a crime as per Section 166A(c) IPC. If even that does not help, she can approach the Superintendent of Police (SP) of the area.
6.    If even SP does not help her, she can file a complaint to the jurisdictional magistrate u/s 156(3) CrPC.
7.    The survivor can also assume the role of prosecution and lodge a private complaint u/s 200 CrPC before the magistrate.
8.    The magistrate u/s 156(3) can direct for registration of FIR and investigation.
9.    Section 173(1A) mandates that investigation in relation to rape of a child may be completed within 3 months of recording FIR.
10.Police may arrest the suspected accused but has to produce him      before the magistrate within 24 hours and can seek police custody u/s 167(2). If the police feels that the evidence is not enough to constitute the offence alleged against the accused, it can close the case u/s 169 CrPC and release the accused. Police custody is maximum for 15 days after which the police has to seek judicial custody.
11.Medical examination of a rape survivor can only be done with her express consent as pr Section 164A (7) CrPC. The examination is to be carried out within 24 hours of receiving information by a registered medical practitioner. As per Section 41 POCSO exempts medical examination of a child as an offence if it is undertaken with the consent of child’s parents or guardians.
12.As per Section 357C CrPC, all hospitals public or private have to provide free first aid or treatment  to survivors of offences us 326A and 376 – 376E and inform the police immediately.
13.Section 53 CrPC provides for medical examination of the accused. Section 53A provides for medical examination of a rape accused. Reasonable force can be used for carrying out medical examination u/s 53A. After conclusion, the medical practitioner shall forward a report to the Investigating Officer.
14.Throughout the investigation process, the police has to maintain a Case Diary (CD) as mandated by Section 172 CrPC and must note all progress of investigation in it.
During trial there are certain presumptions beneficial to the survivor. There is a presumption as to absence of consent in a prosecution of rape. [Section 114A Evidence Act, 1872] Her previous sexual experience is not relevant to decide on consent. [Section 53A Evidence Act, 1872]. The general immoral character of her with any person cannot be proved either through cross-examination or leading evidence in rebuttal [Section 146 proviso Evidence Act, 1872]
It must be borne in mind that delay in lodging complaint/FIR is not fatal to the prosecutrix’s case. Delay may be explained. One must however not hesitate in reporting the crime. Do remember, one who does it to one, will do it to another.


रातो रात दिग्विजय से खड्गे ?

                                                रातो रात दिग्विजय से खड्गे  ? एक बार फिर कांग्रेस में या यूँ कहें कि परिवार में राहुल गाँधी ...